Sunday, September 22, 2013

बात कुछ ऐसी हुई थी वहाँ

ज़ायक़ा ज़ुबान पे जिसका आया यहाँ

तकलीफ़ भरी बातें तो तुमने कहीं वहाँ

मेरी ज़ुबान ने भरा हरजाना यहाँ !

__________________________________________________________


मेरी सोच एक दायरे मैं बंद क्यूँ हैं?

ख्वाबों के रास्तें भी लगते तंग क्यूँ हैं?

आलम यह है की अल्फाज़ों की कमी हो गयी है

अब तो लिखने के लिए चोट खानी लाज़मी हो गयी है!


__________________________________________________________

No comments:

Post a Comment