बात कुछ ऐसी हुई थी वहाँ
ज़ायक़ा ज़ुबान पे जिसका आया यहाँ
तकलीफ़ भरी बातें तो तुमने कहीं वहाँ
मेरी ज़ुबान ने भरा हरजाना यहाँ !
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मेरी सोच एक दायरे मैं बंद क्यूँ हैं?
ख्वाबों के रास्तें भी लगते तंग क्यूँ हैं?
आलम यह है की अल्फाज़ों की कमी हो गयी है
अब तो लिखने के लिए चोट खानी लाज़मी हो गयी है!
ज़ायक़ा ज़ुबान पे जिसका आया यहाँ
तकलीफ़ भरी बातें तो तुमने कहीं वहाँ
मेरी ज़ुबान ने भरा हरजाना यहाँ !
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मेरी सोच एक दायरे मैं बंद क्यूँ हैं?
ख्वाबों के रास्तें भी लगते तंग क्यूँ हैं?
आलम यह है की अल्फाज़ों की कमी हो गयी है
अब तो लिखने के लिए चोट खानी लाज़मी हो गयी है!
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