Wednesday, April 2, 2014

कहाँ मिले थे? कहाँ चले थे?
वो यादें ज़रा कमज़ोर सी हैं 
क्या खरीदा था? क्या बकाया है?
वो हिसाब भी ज़रा छूटा हुआ है 

कहाँ जाना है? क्या पाना है?
अभी उन उम्मीदों ने हमें जकड़ा नहीं है 
एक सुकून हैं बेख़बरी मे अलग सा
एक इतमीनान सिर्फ़ साँस लेने मे भी है 

बेताले मुखड़े पे भी कदम थिरक जातें हैं कभी,
सुरों से ज़यादा रूह की लालसा है अभी 
इस भागती, चीखती दुनिया से कहो,
चन्द बातें हमारी बाकी हैं अभी 

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